Thursday, March 25, 2010

मेरे दाढ़ी वाले बाबा

मुझे अपना वादा याद हैं. आपको खिलोनो के सहारे कहानी सुनाने का क्रम शुरू होता हैं अब.
खिलोनो की दूकान पर मुझे एक साधू की मूर्ति दिखाई दी मुझे याद गए बचपन के वो साधू बाबा चेहरे पर चमकता तेज घनी काली  दाढ़ी. कानपुर की एक सरकारी कालोनी में बीता हैं बचपन याद हैं यह बाबा. महीने में दो बार वो मोहल्ले में आते थे. हर पूरनमासी के दिन उनकी आवाज सुनाई देती थी. बस वो इतना  ही बोलते थे आज शाम को भण्डारा हैं आप सभी जो सहयोग बन पड़े कर दें. मैंने अपनी आख से देखा हैं की हर घर से घी आटा शक्कर जिससे जो बन पड़ता वो देता. उन बाबा के प्रति आदर सबके  मन में था. यही कोई चार वर्ष की उम्र रही होगी मेरी स्कूल जाना शुरू कर दिया था . इतने सीधे  बाबा की कभी भी किसी से कुछ लेना या किसी प्रकार का लालच मैंने नहीं देखा शाम को भण्डारा देख यकीन नहीं होता था की किस प्रकार बाबा ने मोहल्ले को एक सूत्र में बाँध रखा था . मोहल्ले की सारी औरतें रसोई संभालती और पुरुष बड़े प्रेम से खाना खिला रहे होते लगता था की जैसे कही कोई शादी का इंतजाम हो. मेरे घर में माँ और मेरे बाबा हर भंडारे में जाते. बाबा जब मुझे ना देखते तो मेरे बारे पूछते. मेरे घर जब भी वो आते तो सब लोग कहते इनके पैर छुओ लेकिन वो कभी भी बच्चओ से पैर नहीं छुआते थे कहते थे ये तो बाल गोपाल हैं इनमे भगवान् बसते हैं. पता नहीं बचपन से ही उनके प्रति मेरे मन में आदर था वो जब रामकथा सुनाते तो लगता था जैसे हम अयोध्या के राजदरबार में बैठे हो. मोहल्ले में किसी के घर कोई संकट हो हाजिर रहते थे बाबा. बड़ी से बीमारी पर भी बड़ी आसानी से कहते हनुमान चालीसा पढो राम राम कहो देवी माँ सब ठीक कर देंगी. बाबा के इतना कहने पर ही बहुत से लोग राहत महसूस करते थे.  वो कहा से आये ये किसी को नहीं मालूम था. हम बच्च लोग जब कहानी सुनाने को कहते तो कहानी सुनाते. इतने सहज की इसका अहसास अब होता हैं जब आज के बाबा लोगो को देखता हूँ तो उनके  लिए आदर और बढ़ जाता हैं.  एक समय मेरा स्कूल जाने का मन नहीं कर रहा था मुझे जबदस्ती स्कूल भेजा जा रहा था तभी वो बाबा आ गए और बोले मत भेजो स्कूल आज बाल गोपाल  मेरे   साथ रहेंगे. दिन भर उन्होंने मुझे कई कहानिया सुनाई. हर कहानी में कुछ सन्देश. मुझे छोड़ने घर आये. एक  दिन सुबह सुबह घर पर आये और बोले मैं सब मोहल्ले वालो से मिलना चाहता हूँ मैं अपनी कहानी सुनाऊंगा. अब मेरे जाने का समय आ गया हैं. भगवान् का आदेश आ चुका हे. उस दिन मुझे याद पड़ता हैं शनिवार का था. बाबा अपनी कहानी सुना रहे थे. बाबा एक बड़े डॉक्टर थे कोलकाता में रहते थे एक खुशहाल परिवार था. डॉक्टर के पेशे में उनसे एक चूक हो गई. वो अस्पताल से अपने घर आ गए और एक इमरजेंसी केस आ गया लेकिन वो भोजन करने लगे और उस मरीज की मौत हो गई मरीज .एक २२ साल का युवक था जिसकी शादी को दो महीने ही हुआ था.   युवक के माँ बाप और पत्नी का रो रो कर बुरा हाल था.  बाप और पत्नी ने दुःख के मारे अस्पताल में दम तोड़ दिया एक साथ तीन मौते मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था. पत्नी के समझाने के बाद भी मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाया और रात में घर छोड़ कर चला आया. मेरे बेटे ने भी कोई खोज खबर नहीं ली. बस समझ में आ गया की संसार मिथ्या हैं. आज २० साल हो गएँ. मोहल्ले के मंदिर में मुझे गुप्ता जी ने जगह दिला दी तब से आप लोगो के बीच हूँ  अभी मुझे खबर मिली की मेरी पत्नी ने सुबह ये संसार छोड़ दिया हैं और उसकी अभी तक की देखभाल उस महिला ने की थी जिसका बेटा मेरी चूक से दम तोड़ गया था. उस औरत ने मुझे कभी भी अपने बेटे बहू और पति की मौत के लिए दोषी नहीं माना.बाबा अपनी कहानी सुना रहे थे और मेरा बाल मन बड़े गौर से सुन रहा था. मोहल्ले वालो की आँखों में आसूं थे. माँ और मेरे बाबा भी रो रहे थे. अंत में बाबा बोले सुबह भण्डारा हैं आखिरी हैं. सबलोगो को आना हैं मेरी तरफ देख कर बोले बाल गोपाल भी जरूर आयें. बाबा मंदिर जहा वो रहते थे लौट गए. मोहल्ले वालो ने मेरे घर पर रात गुजारी. सब के मन में था की बाबा के बिना क्या होगा. सुबह माँ ने मुझे स्कूल नहीं भेजा.  भण्डारा में सुबह चार बजे से ही भीड़ जुटनी शुरू हो चुकी थी. माँ और बाबा भी पांच बजे तक पहुच चुके थे. कुछ देर बाद हम भी पहुचे. सबको बाबा अपने हाथ से दही जलेबी खिला रहे थे. खाने खिलाने का क्रम १२ बजे तक चला.  इसके बाद बाबा ने सबको कहा की अब हम चलते हैं हमारा समय आ गया हैं पूजा पर बैठ रहा हूँ दो बजे के बाद ही कोई मंदिर में प्रवेश करेगा. कोई शोर नहीं करेगा. सारे मंदिर परिसर में सन्नाटा छा गया. मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था की क्या करे. किसी तरह दो बजे. कुछ देर बाद लोग मंदिर में गए. देखा बाबा खामोश बैठे हैं. एक बक्सा खुला पड़ा हैं. एक तस्वीर पड़ी हैं. बाबा की आखें बंद हैं, कोई हलचल नहीं.सामने  दीपक जल रहा हैं. थोड़ी देर बाद कुछ लोग बाहर निकले और बोले बाबा हम सबको छोड़ कर चले गए. तस्वीर बाबा के परिवार की थी. साथ में एक पत्र भी. सबको पयार और ना रोने का वादा लिया था बाबा ने. पत्र के साथ डाक्टर की डिग्री भी पड़ी थी. उस पर लिखा था डाक्टर शिव नाथ शर्मा मेयो हॉस्पिटल. उस दिन के बाद से कई दिन हमारे यहाँ मातम छाया  रहा. आज इस घटना को कई साल बीत गए हैं लेकिन  वही बचपन वाले बाबा ही मेरे आदर्श हैं. ना नाम की चाह ना  लालच. आज के बापू और बाबा से बहुत दूर. मेरे दाढ़ी  वाले  बाबा. आज बहुत याद आ रहे हूँ तुम. खिलोनो की दूकान वाला भी मेरे चेहरे पर आते जाते भाव देख बोल  बैठा ले लो यह साधू एक ही पीस बचा हैं. मैं वो साधू की मूर्ति ले ली और अपने  बचपन के बाबा को हमेशा के लिए अपने घर में रख लिया.

3 comments:

  1. bahut hi marmik kahani hai. aaj ke samay me baba ka matlab hota hai bhrast aur wyavichari. aaj koi apna tak itna saath nahi deta phir ye baba sab ke liye apne the.

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  2. bahut hi bhavuk kar diya aapne sir. aise log wakai bahut kam hain is samaj mein. jise dekho wahi chal karne ke jugat mein kisi na kisi ko maar raha hai aur marta chala ja raha hai. Zaindagi ke prati ek aur sakaratmatk najariye se roobroo karane ke liye bahut bahut shukriya sir.

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  3. bhaand aur phir shadhu ki kahani kya contrast mara hai sir. apke blog ka title achhaa hai. agle post ka intezaar rahega.

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