रो पड़े अम्बेडकर बाबा
अम्बेडकर बाबा अपनी जयंती के दिन फूल मालाओ से ढंकी मूर्तियों से वो निकल कर अम्बेडकर पार्क वाले चौराहे पर आ गये थे. पथरो से निकलने वाली धूल से उनका दम घुटा जा रहा था. दर्जनों क्रेन भी धूल उगल रही थी और बाबा चुपचाप उदास खड़े थे. बाबा बोले पहले पानी लाओ मेरा गला सूख रहा हैं. चौराहे पर घिसट रहे एक विकलांग ने अपनी बोतल पकड़ा दी. बाबा ने बोतल के गर्म पानी से गला तर किया. फिर बाबा बोले तो बोलते ही चले गए. देखो राजनीति भी कितनी गन्दी हैं. मेरे नाम पर एक से बढकर एक स्मारक बनवाए जा रहे लेकिन आसपास तो क्या दसियो किलोमीटर तक कही एक भी पौशाला नहीं हैं. लाखो पेड बिना बात बेरहमी से काट डाले गए. क्या किसी पेड का नाम अम्बेडकर नहीं रखा जा सकता था. मेरे सम्मान में उसे ही सब जगह लगवाते. मेरे नाम पर लाखो पेड क्यों शहीद हुए. क्यों हुई लखनऊ की बर्बादी. आज हर लखनऊ वाला मुझे कोसता हैं. अब लोग कहने लगे हैं की लखनऊ का नाम बदल कर अम्बेडकरगंज कर दो. मेरे नाम पर पौशाला होती और उससे लोग प्यास बुझाते तो मुझे अच्छा लगता. मेरे नाम पर गोमतीनगर और आलमबाग में पेडो का जो कत्लेआम हुआ उससे मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ. ये बड़े बड़े स्मारक मुझे नहीं भाते. अब सुना हैं स्मारक की सुरक्षा के लिए फोर्स बन रही हैं. बेजान बुतों पर पैसा पानी की तरह बह रहा हैं और उधर पुलिस भर्ती घोटाले के बाद घुट घुट कर मर रहे बेरोजगार पुलिस वालो के परिवार के आसूं पोछने वाला कोई नहीं. मैंने तो हजरतगंज जाना छोड़ दिया हैं. पता चला हैं की सुभाष जी की मूर्ति के बगल में दलित चेतना जगाई जा रही हैं. बताते हैं की वो परिवर्तन चौक हैं. वाकई परिवर्तन हो गया हैं. सुभाष जी... इस अम्बेडकर को माफ़ करिएगा. ये दलित चेतना जगाने वाले नहीं जानते की आपका कद परिवर्तन चौक वाले नेता से कही ऊंचा हैं. दलित चेतना यही पास में फुटपाथ पर सोती हैं. कही कही दलित चेतना एसी में जाग्रत होती हैं. बड़ी बड़ी गाडियो में सत्ताधारी झंडो के साए में दलित चेतना जब सडको पर कुलांचे मारती हैं तब मै भी अपनी चेतना खो देता हूँ. अपने अगल बगल दलित नेताओं की मूर्तियों को देख चौंक उठता हूँ. नोटों की माला देख मै उन दलितों को याद करता हूँ जिनके लिए मै जीवन भर लड़ता रहा. आज की दलित चेतना में मुझे वो दलित दिख ही नहीं रहे.आज भी कलुआ बंधुआ हैं. मनरेगा भी उसकी हिम्मत नहीं बढा पा रही. इतना कहते कहते बाबा रो पड़े और बोले लखनऊ को बचा लो मेरे नाम पर इसे मत उजाडो. मीडिया भी नहीं बचा पा रहा लखनऊ को. बस इतना कह कर अम्बेडकर बाबा वापस मूर्तियों में समा गए.
Saturday, April 17, 2010
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What a great piece! Really, Ambedkar was the great politician who thought of people's welfare. Had he been amongst us, He would have certainly cried over extravagance of money that should be used on development schemes. Ple
ReplyDeletekya baat hai sir
ReplyDeleteexcellent......